Friday 5 August 2011

कह्कर कभी और कभी बिन कहे,
मुझे बताया,
है सही क्या?और कहा हु मै गलत?
शब्द मेरी आवाज को,
और कदम मेरे पैरो को दिये
दिया एक नजरिया दुनिया को देखने का,
देकर जीवन ,समझाया अर्थ जीवन का
दी पहचान मेरे नाम को
जब भी चाहा किसी आसु ने ,गिरनI इन आखो से,
वही बधकर रोक लिया उनके हाथो ने,
मेरि एक मुस्कान के लिये किये हज़ारो जतन
पूरा किया हर ज़रूरत को ज़रूरत से पहले,
और सो भी लिया मेरी ही आखो से
और सुना मेरी खामोशी को भी
कभी हुई जो तकलीफ़ मुझसे से ज्यादा किया महसूस
और खुश हुये मेरी खुशी मे
मेरे पापा
पाया है जो उन से उसे ही बाटना है
ले जो आए है यहा तक
इस से आगे जाना है
हर कदम पर मेरे हर मोड पर चाहती हु साथ उनका
भूलकर भी नही चाह्ती भूलना उनका सिखाया,
बन जाना चाहती हु मै बस उनके जैसा

Friday 20 May 2011

शहर

बैठॆ बैठे यूँ ही,खो जाती हूँ,
उस शहर की याद मॆं,जहाँ
बसतीं हैं खुशियाँ और मीठी यादें,
वो प्यारी जगह,जहाँ
प्यार था सबके लिए
ना कोई अपना ना पराया था,
वहा वो मेरे साथ रहता था,हर वक्त,
लॆ जाती थी हाथ पकडकर,स्कूल उसॆ
जब आदत नहीं थी,उसे स्कूल की
झगडना उस सॆ फिर साथ मॆं खॆलना,
मिलकर शैतानी करना,फिर शिकायते करना,
उसे डराया भी,और डाँट से बचाया भी,
समय बदला और हम वहाँ से आगए
अब वो मुझे ले जाता है,जहाँ मुझेजाना हो
झगडे तो अब भी होतेहैं,पर साथ मॆं खॆला नहीं करते
अब हम वहा उस शहर मॆं,जाया नही करते
वो शहर हमारा बचपन था............................

Saturday 7 May 2011

मैं

क्या है, नहीं जो मेरे पास,
            कुछ तो है, जिसकी मुझे है आस,
पा कर सब कुछ भी,
            क्यों है खाली मेरे हाथ,
होते हुये भी सब के,
              क्यों हूँ, अकेली मैं आज,