Friday 5 August 2011

कह्कर कभी और कभी बिन कहे,
मुझे बताया,
है सही क्या?और कहा हु मै गलत?
शब्द मेरी आवाज को,
और कदम मेरे पैरो को दिये
दिया एक नजरिया दुनिया को देखने का,
देकर जीवन ,समझाया अर्थ जीवन का
दी पहचान मेरे नाम को
जब भी चाहा किसी आसु ने ,गिरनI इन आखो से,
वही बधकर रोक लिया उनके हाथो ने,
मेरि एक मुस्कान के लिये किये हज़ारो जतन
पूरा किया हर ज़रूरत को ज़रूरत से पहले,
और सो भी लिया मेरी ही आखो से
और सुना मेरी खामोशी को भी
कभी हुई जो तकलीफ़ मुझसे से ज्यादा किया महसूस
और खुश हुये मेरी खुशी मे
मेरे पापा
पाया है जो उन से उसे ही बाटना है
ले जो आए है यहा तक
इस से आगे जाना है
हर कदम पर मेरे हर मोड पर चाहती हु साथ उनका
भूलकर भी नही चाह्ती भूलना उनका सिखाया,
बन जाना चाहती हु मै बस उनके जैसा

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