Friday 20 May 2011

शहर

बैठॆ बैठे यूँ ही,खो जाती हूँ,
उस शहर की याद मॆं,जहाँ
बसतीं हैं खुशियाँ और मीठी यादें,
वो प्यारी जगह,जहाँ
प्यार था सबके लिए
ना कोई अपना ना पराया था,
वहा वो मेरे साथ रहता था,हर वक्त,
लॆ जाती थी हाथ पकडकर,स्कूल उसॆ
जब आदत नहीं थी,उसे स्कूल की
झगडना उस सॆ फिर साथ मॆं खॆलना,
मिलकर शैतानी करना,फिर शिकायते करना,
उसे डराया भी,और डाँट से बचाया भी,
समय बदला और हम वहाँ से आगए
अब वो मुझे ले जाता है,जहाँ मुझेजाना हो
झगडे तो अब भी होतेहैं,पर साथ मॆं खॆला नहीं करते
अब हम वहा उस शहर मॆं,जाया नही करते
वो शहर हमारा बचपन था............................

Saturday 7 May 2011

मैं

क्या है, नहीं जो मेरे पास,
            कुछ तो है, जिसकी मुझे है आस,
पा कर सब कुछ भी,
            क्यों है खाली मेरे हाथ,
होते हुये भी सब के,
              क्यों हूँ, अकेली मैं आज,