Monday 8 August 2022

भ्रम


उमड़ घुमड़ कर मन में आते जाते हैं कुछ विचार 

कुछ कह जाने का मन करता है, अपनी बातें समझाने का मन करता है ...

एक आवाज़ अंदर से आती है कि तोड़ो चुप्पी अपनी 

कुछ तो बोलो, कुछ तो पुछो...

पर वो नहीं कहती, कुछ न ही कुछ पुछती है 

उन सवालो के जवाब से उसे डर लगता है 

वो जानती है कि उन जवाबों से उसका भ्रम टूट जाएगा 

भ्रम सबकुछ अपना होने का,अपने अधिकार का, तुम्हें जरूरत है उसकी,इस बात का भ्रम...

इसलिए चुप रहती है  वो...

उस झूठ में ही खुशियाँ ढूंढ लेती है जिसमे उसे गुमा है 

कि वो रानी है, इस घर की तुम्हारे दिल की॥


Friday 9 October 2015

प्यार

गुम हुआ, कुछ इस तरह,
हवा में बस घुल गया
प्यार था या था वहम,
कपूर की तरह बस उड़ गया
              

Friday 11 September 2015

नदी

ज़िंदगी बस चलती जा रही है,
और, मैं भी
वक़्त रुकता नहीं,और वक़्त के साथ
मैं चल पाती नहीं,
वक़्त के इस बहाव में, बस
बहती जा रही हूँ।
न रास्ते में कोई पत्थर है, जिससे
टकराकर कुछ गति मिले,
कुछ विराम मिले,
न ही दरख़्तों से गिरे हुए पत्ते
जो बह लें मेरे साथ,
कहीं किसी दूरी तक
रुकना सीखा नहीं, इसलिए ही
बस बहती जा रही हूँ, इंतज़ार है
सागर में मिल जाने का,
मिलकर सागर में, अपना अस्तित्व 
ख़त्म कर लेने का।

Monday 18 May 2015

ज़िंदगी

ज़िंदगी तू है और एक मैं 
समझना तुझे चाहती हूँ,पर
तू मेरी समझ से है दूर, बहुत दूर
कभी छू कर महसूस करना चाहूँ
तो लगता है, तू भाग रही है
तुझे बढ़कर रोकना चाहूँ , तो
लगता है , तू पहले से ही थमी है
हर पल रंग बदलती है, तू
कभी बहुत फीके तो कभी बहुत स्याह
जब भी चाहूँ तेरे रंग में रंगना 
उसी समय रंग बदलती है तू...

Friday 5 August 2011

कह्कर कभी और कभी बिन कहे,
मुझे बताया,
है सही क्या?और कहा हु मै गलत?
शब्द मेरी आवाज को,
और कदम मेरे पैरो को दिये
दिया एक नजरिया दुनिया को देखने का,
देकर जीवन ,समझाया अर्थ जीवन का
दी पहचान मेरे नाम को
जब भी चाहा किसी आसु ने ,गिरनI इन आखो से,
वही बधकर रोक लिया उनके हाथो ने,
मेरि एक मुस्कान के लिये किये हज़ारो जतन
पूरा किया हर ज़रूरत को ज़रूरत से पहले,
और सो भी लिया मेरी ही आखो से
और सुना मेरी खामोशी को भी
कभी हुई जो तकलीफ़ मुझसे से ज्यादा किया महसूस
और खुश हुये मेरी खुशी मे
मेरे पापा
पाया है जो उन से उसे ही बाटना है
ले जो आए है यहा तक
इस से आगे जाना है
हर कदम पर मेरे हर मोड पर चाहती हु साथ उनका
भूलकर भी नही चाह्ती भूलना उनका सिखाया,
बन जाना चाहती हु मै बस उनके जैसा

Friday 20 May 2011

शहर

बैठॆ बैठे यूँ ही,खो जाती हूँ,
उस शहर की याद मॆं,जहाँ
बसतीं हैं खुशियाँ और मीठी यादें,
वो प्यारी जगह,जहाँ
प्यार था सबके लिए
ना कोई अपना ना पराया था,
वहा वो मेरे साथ रहता था,हर वक्त,
लॆ जाती थी हाथ पकडकर,स्कूल उसॆ
जब आदत नहीं थी,उसे स्कूल की
झगडना उस सॆ फिर साथ मॆं खॆलना,
मिलकर शैतानी करना,फिर शिकायते करना,
उसे डराया भी,और डाँट से बचाया भी,
समय बदला और हम वहाँ से आगए
अब वो मुझे ले जाता है,जहाँ मुझेजाना हो
झगडे तो अब भी होतेहैं,पर साथ मॆं खॆला नहीं करते
अब हम वहा उस शहर मॆं,जाया नही करते
वो शहर हमारा बचपन था............................

Saturday 7 May 2011

मैं

क्या है, नहीं जो मेरे पास,
            कुछ तो है, जिसकी मुझे है आस,
पा कर सब कुछ भी,
            क्यों है खाली मेरे हाथ,
होते हुये भी सब के,
              क्यों हूँ, अकेली मैं आज,